1. On Love
Love is a joyful celebration of another’s existence –
an absolute affirmation of the worth and grandeur of that being.
It is a rapturous acceptance of the other, who is cherished just for being.
Sacredness lies in the miracle of that being’s existence in itself!
From the novel: romancing the truth by dr. sanjay grover
To know what true love is, read: No ‘one’ can Love…
Comments
Brijinder
Beautiful. I am sharing one of my poem about my understanding of love, which is all what is written in your blog:
My poem in devanagari and Roman script. Wrote it long ago.
इश्क़
इश्क़ जुनूं भी है संजीदगी भी है
यह हविस भी है पाकीज़गी भी है (हविस-lust)
शोख़ी भी है इश्क़-
बांकी अदाओं पे लुटने का नाम भी है
रूह -ए-इरतक़ा-ए -दिल -ओ -दिमाग़ भी – (soul of the development of emotions and mind))
ज़िंदगी को समझने का नाम भी है
इश्क़ मसरुफियत भी फुर्सत भी है (मसरुफियत -busy)
इश्क़ क़ुर्बत भी और फुरक़त भी है (क़ुर्बत-नज़दीकी,फुरक़त -दूरी(जुदाई)
इश्क़ रिफयत भी और वुसअत भी है (रिफयत-ऊंचाई , वुसअत-विशालता)
और इश्क़ कभी फक़त चाहत भी है
यह मासूमियत भी रख्शंदगी भी है (रख्शंदगी -मस्ती)
बोसा है तो कभी बंदगी भी है (बोसा-kiss)बंदगी-पूजा)
ज़मीं भी है और आसमां भी है
मगर उफक़ का इसमें निशां भी है (उफक़-क्षितिज,horizon)
कभी बिस्तर की सलवटों सा –
तो कभी मंदिर की मूरतों सा
कभी उरयानिओं का शैदा (उरयानिओं का शैदा-lover of physical love(nudity)
तो कभी मीरा -ओ -मरियम की सूरतों सा
इश्क़ रोग भी मगर मदावा भी है (मदावा- इलाज)
इश्क़ परस्तिश भी मगर दावा भी है (परस्तिश-पूजा)
रिश्तों से सदा जुदा है इश्क़
इसलिये ही बना ख़ुदा है इश्क़
——————— Brijinder ‘Sagar’
Sanjay Grover
Thank you Brijinder…what a lovely poem. Indeed, when Truth is one, then we are talking about the same thing. It’s just the expression and language that differs.